गुरुवार, 8 मई 2014

तन्हाइयां

 








अक्सर तन्हाइयां मुझसे पूछती है
क्या मिला तुझको वफा करके
हो पूरी हर ख्वाहिश ये है जनून
उसने पाई हर खुशी और सकून
क्या मिला उसको मुझसे जफा करके
अक्सर तन्हाइयां ........................

दर्द है हर जगह गम फैला है हर सूं
मैने पाए है जख्मे जिगर के आंसू
क्या मिला मुझे खुद को फना करके
अक्सर तन्हाइयां ..........................

गुरुवार, 27 मार्च 2014

बहुत हैं,


खुशियां कम और अरमान बहुत हैं
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,,

करीब से देखा तो है रेत का घर

दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,,

कहते हैं सच का कोई सानी नहीं

आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,,

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी

यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,,

तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन

जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,,

वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात

वैसे शहर में अपनी पहचान बहुत हैं.....
                                                            अंजान 

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

दिल लगी


किया है प्यार हमने जिसे जिन्दगी की तरह
वो आशना भी मिला हमे अजनबी की तरह
सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
कुबूल हमने किये जिसके गम ख़ुशी कि तरह
बढ़ा कर प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल लगी की तरह
कभी सोचा था हमने 'कतील' उसके लिए
करेगा वो भी सितम हमपे हर किसी की तरह

सोमवार, 13 मई 2013

चंद शेर

रोज  होते  है  हादसे  दिल  के
जख्म कब तक कोई गिने दिल के
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यहाँ किसी से उम्मीदे वफा न रख नादाँ
यही समझ ले कि ये दौर पत्थरों का है
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ये जख्मे इश्क है कोशिश करो हरा ही रहे
कसक नही जायगी अगर ये भर भी गया
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उड़ते है वो हमेशा आसान सी हवा में
चालाक परिंदों के कभी पर नही कटते
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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

चंद शेर



लफ्ज़  पढना  तो  मेरी  आदत  है
तेरा  चेहरा  किताब  सा  क्यों  है
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वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा
कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते
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रात देखी है पिघलती हुई जंजीर कोई
मुझे बतायेगा इस ख्वाब की ताबीर कोई
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ना जाने क्यूँ हर इम्तिहान के लिए
जिन्दगी  को  हमारा  पता  याद  है
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                                              अनजान शायर





सोमवार, 22 अप्रैल 2013

माँ,बहन,बीवी,बेटी



औरत तुम भी अजीब शय हो 
तुम्हारे हजारों रूप है 
किसी रूप मे माँ,बहन,बीवी,बेटी 
तुम्हारे अंदर इतनी ममता भरी है की 
तुम ज़िंदगी भर मर्द पर 
अपनी ममता निछावर करती हो 
मगर मर्द आखिर मर्द होता है 
तुम्हें हर रूप मे तड़पने वाला 
सिसकने वाला......बेएतबार