शुक्रवार, 27 मई 2011
सोमवार, 23 मई 2011
उसकी आँखों को गौर से देखो
बेवफा रास्ते बदलते है
हमसफ़र साथ चलते है
किसके आसू छिपे है फूलो में
चूमता हू तो होठ जलते है
उसकी आँखों को गौर से देखो
मंदिरों में चराग जलते है
दिल में रहकर नजर नहीं आते
ऐसे कांटे कहा निकलते है
एक दीवार वो भी शीशे की
दो बदन पास-पास जलते है
कांच के मोतियों के आसू के
सब खिलौने गजल में ढलते है
- बशीर बद्र
सोमवार, 2 मई 2011
चाँद खिड़की में अकेला होगा - बशीर बद्र |
शाम से रास्ता तकता होगा
चाँद खिड़की में अकेला होगा
धुप की शाख पे तन्हा-तन्हा
वो मोहब्बत का परिंदा होगा
नींद में डूबी महकती साँसे
ख्वाब में फुल सा चेहरा होगा
मुस्कुराता हुआ झिलमिल आसू
तेरी रहमत का फ़रिश्ता होगा
- बशीर बद्र http://www.jakhira.com/2011/01/blog-post_11.html
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