गुरुवार, 8 मई 2014

तन्हाइयां

 








अक्सर तन्हाइयां मुझसे पूछती है
क्या मिला तुझको वफा करके
हो पूरी हर ख्वाहिश ये है जनून
उसने पाई हर खुशी और सकून
क्या मिला उसको मुझसे जफा करके
अक्सर तन्हाइयां ........................

दर्द है हर जगह गम फैला है हर सूं
मैने पाए है जख्मे जिगर के आंसू
क्या मिला मुझे खुद को फना करके
अक्सर तन्हाइयां ..........................

गुरुवार, 27 मार्च 2014

बहुत हैं,


खुशियां कम और अरमान बहुत हैं
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं,,

करीब से देखा तो है रेत का घर

दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं,,

कहते हैं सच का कोई सानी नहीं

आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं,,

मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी

यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं,,

तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन

जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं,,

वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात

वैसे शहर में अपनी पहचान बहुत हैं.....
                                                            अंजान