मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

चंद शेर



लफ्ज़  पढना  तो  मेरी  आदत  है
तेरा  चेहरा  किताब  सा  क्यों  है
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वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा
कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते
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रात देखी है पिघलती हुई जंजीर कोई
मुझे बतायेगा इस ख्वाब की ताबीर कोई
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ना जाने क्यूँ हर इम्तिहान के लिए
जिन्दगी  को  हमारा  पता  याद  है
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                                              अनजान शायर





सोमवार, 22 अप्रैल 2013

माँ,बहन,बीवी,बेटी



औरत तुम भी अजीब शय हो 
तुम्हारे हजारों रूप है 
किसी रूप मे माँ,बहन,बीवी,बेटी 
तुम्हारे अंदर इतनी ममता भरी है की 
तुम ज़िंदगी भर मर्द पर 
अपनी ममता निछावर करती हो 
मगर मर्द आखिर मर्द होता है 
तुम्हें हर रूप मे तड़पने वाला 
सिसकने वाला......बेएतबार