लफ्ज़ पढना तो मेरी आदत है
तेरा चेहरा किताब सा क्यों है
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वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा
कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते
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रात देखी है पिघलती हुई जंजीर कोई
मुझे बतायेगा इस ख्वाब की ताबीर कोई
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ना जाने क्यूँ हर इम्तिहान के लिए
जिन्दगी को हमारा पता याद है
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अनजान शायर