शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

किसे खबर थी

 

 

 

395775_142528699197796_100003220012448_161262_322663290_n

 

किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सताऊंगा

ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊंगा

 

हयातो मौत फिराको विसाल सब यक़ज़ा

मैं एक रात में कितने दिये जलाऊंगा

 

पला बढ़ा हूं तक इन्हीं अंधेरों में

मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊंगा

 

मेरे मिजाज़ की मादराना फितरत है

सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊंगा

 

तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो

हवा के साथ दूर दूर जाऊंगा

                                          बशीर बद्र

1 टिप्पणी: