किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सताऊंगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊंगा
हयातो मौत फिराको विसाल सब यक़ज़ा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊंगा
पला बढ़ा हूं तक इन्हीं अंधेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मेरे मिजाज़ की मादराना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊंगा
तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ दूर दूर जाऊंगा
बशीर बद्र
bahut khoob ............ basheer saheb mere fav shayar hain .
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