मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

चंद शेर



लफ्ज़  पढना  तो  मेरी  आदत  है
तेरा  चेहरा  किताब  सा  क्यों  है
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वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा
कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते
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रात देखी है पिघलती हुई जंजीर कोई
मुझे बतायेगा इस ख्वाब की ताबीर कोई
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ना जाने क्यूँ हर इम्तिहान के लिए
जिन्दगी  को  हमारा  पता  याद  है
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                                              अनजान शायर





4 टिप्‍पणियां:

  1. वफा के बदले में मांगी जो मैने उनसे वफा
    कहा उन्होंने कि पत्थर पे गुल नही खिलते-------
    वाह जीवन के मर्म की बात
    सुंदर अनुभूति


    आपके विचार की प्रतीक्षा में
    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

    जवाब देंहटाएं